Thursday 2 December 2010

आत्मा के वारे में जानें ...know about your soul

आत्मा के वारे में जानें ...know about your soul

आत्मा के वारे में जानें ...know about your soul
आत्मा ( soul ) आकाश (sky )की तरह सूक्ष्म तथा सर्वत्र समाया
हुआ है .आत्मा के स्वरूप का ग्यान होने पर जीव ( man ) अपने
जीव होने के भाव को छोङ देता है . इसे (आत्मा ) जानकर जीव
का स्वभाव आत्मा के समान न जनमने वाला न मरने वाला
अविनाशी भाव हो जाता है . अविवेक अनित्य है यानि ग्यान होने
पर नष्ट हो जाता है . ग्यान बिग्यान आत्मा के ही अधीन है . जिस
प्रकार सर्वव्यापक आकाश में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड संगत पाता है . उसी
प्रकार आत्मा ( soul ) भी आकाश की तरह इससे भी अति सूक्ष्म
है . बिना आत्मा की संगति के शरीर( body ) चेष्टा नहीं पाता .
आत्मा अपनी इच्छा से ही सिमट जाती है . शरीर का अस्तित्व नहीं
रहता . शरीर के द्वारा ही वह ग्यान करता है . ध्यानावस्था में सुरति
के द्वारा स्वर में शब्द को पूरक कुम्भक रेचक स्थिति को पा जाता है
फ़िर कुछ देर का अभ्यास वर्ण वाले शब्द को पार करके बिन्दु रूप में
पहुँच जाता है. बिन्दु रूप में पहुँचकर वह बिन्दु परमात्मा(god ) में
संगत पाता है . इस लिये बिन्दु (point ) के द्वारा ब्रह्म में मिलकर उस
परमात्मा का साक्षात्कार ( interview ) करता है .
साधक इन्द्रियों को एकाग्र कर लेता है तथा सुष्मणा में प्रवेश करता
है .तब सूक्ष्म शरीर सुष्मणा से ब्रह्मरन्ध्र में होता हुआ शरीर में ऊपर दसवें
द्वार होकर आत्मा में लीन हो जाता है . इन्द्रियों के सब दरवाजे बन्द करें
तब तन मन अन्दर ही जम जायेगा तथा दबाया हुआ मन ह्रदय में ही पङा
रहेगा तब प्राण के द्वारा अक्षर का ध्यान करना चाहिये .जो प्राण तथा प्राण
के परे भी है फ़िर ब्रह्मरन्ध्र से होता हुआ ध्यान को ऊपर की ओर ले जाकर
परमात्मा में स्थिर कर दें जो परमात्मा सर्वत्र सर्वशक्तिमान प्रकाश स्वरूप
आनन्द का भन्डार है . ऐसी स्थिति में योगी सुषमना से शब्द में मिलकर
शरीर से निकल जाता है तथा परमात्मा का साक्षात्कार करता है .
साधक जब ध्यानावस्था में स्थिति होकर अन्तःकरण को प्राण के समान
सूक्ष्म तथा स्वच्छ बना लेता है तब वह वाणी से परावाणी का प्रत्यक्ष अनुभव
कर उसमें लीन हो जाता है . उस परा में लीन होने पर वह एक ऐसी शक्ति
( power ) का अनुभव करता है जिसकी शक्ति से सारे संसार के जीव अपनी
क्रिया कर रहे हैं तथा प्रकृति ( nature ) भी क्रीङा करती हुयी इसी जगत
(world) में दिखायी देती है .यह सारे काम परमात्मा की सत्ता में ही
क्रियावान है .साधक सुरति से पराशब्द का बोध करता है तो वह परा में प्रवेश
होकर आत्मा का साक्षात्कार करता है .

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