Thursday 2 December 2010

कर्मों की गति और आत्मा

कर्मों की गति और आत्मा

 
भगवन श्रीकृष्ण अर्जुन को पूरा सृष्टि ज्ञान बताते रहे पर जब अर्जुन ने कर्तव्य आदि के वारे मैं प्रश्न किया तो श्रीकृष्ण जैसा ज्ञानी भी ठिठक गया श्रीकृष्ण ने कहा की है अर्जुन ये कर्मों की गति वेहद कठिन है .सामान्य तौर पर इसको आजतक कोई समझ नहीं सका है ।
वास्तव मैं ये आत्मा न तो कुछ करता है और न ही कहीं आता जाता है फिर ये बड़े आश्चर्य की बात है के ये जीव रूप मैं कितने दुःख भोग रहा है । वास्तविक बात ये है के ये आत्मा अपने स्वरुप को भूल गया है और अपने आप को जीव मान बैठा है । जबकि सच बात ये है के आत्मा बहुत ऊंची चीज है ।
संत तुलसीदास ने कहा है
इश्वर अंश जीव अविनाशी , चेतन अमल सहज सुखराशी
वास्तव मैं ये आत्मा परमात्मा का ही अंश है । पर इसमें मैं उत्पन्न हो जाने के कारन ये सुख को छोड़कर घोर दुखों मैं आकर फँस गया ।
संत कभी न जन्म लेते है और न ही मरते है । वो सिर्फ जीव को इस मृत्य्लोक से निकलकर उसका वास्तविक परिचय बताते हैं और उसे सुखधाम तक जो की इस आत्मा का असली घर है जाने का तरीका और मार्ग बताते हैं ।
संतों का आगमन इसी हतु इस प्रथ्वीलोक पर होता है वर्ना तो वे अविनाशी लोक के निवासी हैं ।
जब अमरलोक से बिछड़ा जीव घोर दुखों और संकटों मैं प्रभु को याद करता है तो प्रभु उसको इन दुखों से मुक्त करने के लिए संत आत्माओं को इस लोक मैं भेजते है संत दुखी जीवों को दुःख से छुटकारा पाने का उपाय बताते हैं और हमेशा के आनंद का यानि मुक्ति का मार्ग भी बताते हैं । जिसे सहज योग के नाम से जाना जाता है
वास्तव मैं सहज योग न तो कुंडली जागरण को कहते हैं और न ही अस्तान्ग्योग और न ही प्रान्हायाम को और न ही किसी प्रकार के मेडिटेशन ध्यान को सहज योग कहते है और याद रखने योग्य बात ये है के सहजयोग के बिना मुक्ति हो ही नहीं सकती है
इसका एक ही मत है और एक ही नाम है जिसे संतमत के नाम से और सहज योग के नाम से जानते हैं । वास्तव मैं ये ज्ञान गूढ़ है और हजारों बर्षों मैं प्रकट होता है और इसे सिर्फ संतों की कृपा से ही प्राप्त किया जा सकता है

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