सब उपाय बेकार है भाई ..
निज अनुभव तोहि कहहुँ खगेशा .
बिनु हरि भजन न मिटे कलेशा .
कोऊ ना काहू सुख दुख कर दाता .
निज करि करम भोग सब भ्राता .
हरि व्यापक सर्वत्र समाना .
प्रेम से प्रगट होत मैं जाना .
संत मत की द्रष्टि से ये दोहे अधिक कीमती नहीं है पर संसार की
द्रष्टि से ये बहुमूल्य है क्योंकि संसारी जीव को सुख शांति की तलाश
अधिक है इसलिये इन तीन दोहों में उसकी बहुत सी समस्याओं का
हल छुपा हुआ है . निज अनुभव तोहि ..श्री शंकर जी ने गरुण से
कहा है इसलिये इस दोहे को हल्का लेना कतई अक्लमंदी नहीं है .
आप सोचिये शंकर जैसा देवता कह रहा है कि ये मेरा अनुभव है कि
विना हरि भजन के कलेश नहीं कट सकते चाहे वह कितनी बङी
हस्ती क्यों न हो..हरि भजन तो अपनी जानकारी में सभी करते है
फ़िर कलेश क्यों नहीं कटते ..इसका अर्थ ये तो नहीं है कि शंकर झूठ
बोल रहें हैं..सही बात ये है कि वो उस भजन की और इशारा कर
रहे हैं जो गूढ है . गीता में श्रीकृष्ण ने जिस भजन की और इशारा
किया ये उस भजन की बात है . शंकर भी मुक्ति हेतु इसी का उपदेश
करते हैं .
काशी मुक्ति हेतु उपदेशू , महामन्त्र जोइ जपत महेशू .
कोऊ ना काहू सुख दुख कर..जब हम सतसंगी भाई आपस में मिलकर
चर्चा करते है और कोई निगुरा या बाहरी व्यक्ति हमारे वार्तालाप में
शामिल होता है तो अक्सर ये बात अवश्य ही उठती है कि उसने उसके
साथ ऐसा कर दिया उसकी वजह से उसको ये परेशानी हुयी ..ये ही
प्रश्न लक्ष्मण ने राम से किया था कि प्रभो आप तो सब जानने वालें हैं
फ़िर ये बतायें कि भाभी ( सीता ) किस बात का दुख भोग रही है .
तब श्रीराम ने लक्ष्मण को यही जवाव दिया था . संत मत के लोग इसको
बखूबी जानतें हैं कि कोई किसी के साथ कुछ नहीं कर रहा है. जीव
परमात्मा के बनाये नियम के अनुसार अपनी करनी का ही फ़ल भोग रहा
है .अच्छा है तो फ़ल ही है बुरा है तो फ़ल ही है .
हरि व्यापक सर्वत्र .......ये कितनी अजीव बात है कि हम रामायण आदि
का अखंड पाठ आदि करते है अन्य कई तरह की उपासनाएं करते हैं पर
रामायण की इस बात पर हमारा ध्यान ही नही जाता कि भगवान सब
जगह हैं और प्रेम से प्रगट होते हैं .दरअसल इसके दो तरीके है एक तो
भगवान से सतत प्रेम करना और दूसरा सब में भगवान को ही देखना
वास्तव में यह छोटी बात लगती अवश्य है पर है बङी चमत्कारिक . मेरी
जानकारी में कई लोगों ने इस सूत्र का प्रयोग किया और बङे ही चमत्कारी
नतीजे सामने आये .दूसरी बात ये भी है कि कोई माने तो, ना माने तो इसके
अतिरिक्त और कोई मार्ग है ही नही है क्योंकि आत्मा के स्तर पर सबमें वही
परमात्मा ही है जब दूसरा है ही नही तो भेद किसके साथ हो .
ना कुछ तेरा ना कुछ मेरा चिङिया रैन बसेरा .
कितने शरीर बने बिगङे , कितने रिश्ते नाते बने बिगङे फ़िर भी तुम भरमाने
वाले खेल मैं भरमाये हुये हो ...तमाशा देखने वाले तमाशा हो नहीं जाना .
इसलिये ये सब उपाय बेकार है किसी सच्चे संत की तलाश करो उनसे प्रेम
नाम (ढाई अक्षर का महामन्त्र ) विधिपूर्वक लो फ़िर तुम्हारी सारी तलाश
खत्म हो जायेगी क्योंकि उसके पहले तथा उसके बाद न कोई था और न है
और न होगा .
एकोहम द्वितीयोनास्ति ,ना भूतो ना भविष्यति .
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