Thursday 2 December 2010

श्रीमद्भगवद्गीता - शारदा महोदयया प्रेषिता: श्‍लोका: ।।

श्रीमद्भगवद्गीता - शारदा महोदयया प्रेषिता: श्‍लोका: ।।








1- यदा संहरते चायं कुर्मोंगानीव सर्वश:, 
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता.


2- विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिन:
रसवर्जं रसोप्यस्य परं दृष्ट्वा निवर्तते 


3- यततो ह्यपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चित:
इन्द्रियाणि प्रमाथिनी हरन्ति प्रसभम मन: ।।


4- तानिं सर्वाणि संयभ्य युक्त आसीत् मत्पर:
वशे हि यस्येद्रियाणि तस्य प्रज्ञां प्रतिष्ठा  ।।

श्रीमद्भगवद्गीता- केचन् श्‍लोका: शारदा महोदयया प्रेषिता: ।।

1-सुखदु:खे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ, 
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि


2-कर्मण्येव अधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन,
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगो अस्त्वकर्मणि.


श्रीकृष्ण उवाच:
3-प्रजहाति यदा कामान सर्वानपार्थ मनोगतान,
आत्मन्येवात्मना तुष्ट:स्थित्धिर्मनोरुच्यते? 


4-दु:खेश्व्नुद्विग्नमना: सुखेषु विगतस्पृह:,
वीतरागभयक्रोध: स्थितधीर्मुनिरुच्यते !!

दशरथ के तीन विवाह कैसे हुये..?

ये बात उन दिनों की है जब प्रथ्वी पर रावण का डंका बज रहा था और हर तरफ़
उसका जलजला कायम हो चुका था . रावण ने तमाम देवताओं को बन्दी बनाकर
लंका के कारागार में डाल दिया था और भांति भांति से अत्याचार करने में लिप्त
था . तब देवता अक्सर आपस में चर्चा करते और कहते कि अब अयोध्या के राजा
दशरथ का विवाह होगा..फ़िर उनके घर भगवान राम का जन्म होगा..राम इस
दैत्य रावण को मार देंगे और हम मुक्त हो जायेंगे..यही भविष्यवाणी है यही होना है .
रावण के कारागार गुप्तचर इस बात की सूचना रावण को दे देते .आखिरकार
रावण ने तय किया कि वह दशरथ का विवाह ही नहीं होने देगा तो राम का जन्म
कैसे होगा . जन्म नहीं होगा तो उसे मारेगा कौन ?
अपने इस प्रयास हेतु उसने कुछ गुप्तचर अयोध्या में भी तैनात कर रखे थे . दशरथ
युवावस्था में थे जव उनके लिये प्रथम विवाह का प्रस्ताव कैकय देश की राजकुमारी
कैकयी का आया .जो लोग नहीं जानते उन्हें बताना आवश्यक है कि कैकयी बेहद
सुन्दर , सुशील और अतिरिक्त गुणवान युवती थी उसका सौन्दर्य अप्सराओं को
लजाने वाला था . जाहिर था कि वह हर तरह से दशरथ के योग्य थी लेकिन जब
राजपुरोहितों ने कैकयी की कुन्डली का दशरथ की कुन्डली से मिलान किया तो उनके
माथे पर चिंता की लकीरें पङ गयीं और उन्होने कहा कि महाराज इस कन्या से आपने
विवाह कर लिया तो ये आपका समूल नाश कर देगी ऐसा योग बनता है .
लिहाजा जीती मक्खी कौन निगलता अतः वो विवाह प्रस्ताव ठुकराकर वापिस
कर दिया गया . इस बात को कैकय देश की तमाम जनता ने अपनी निजी बेइज्जती
के रूप में लिया क्योंकि कैकयी किसी द्रष्टि से अस्वीकार करने योग्य नहीं थी . रावण
ने चैन की सांस ली .कुछ दिनों के बाद दशरथ के लिये कौशल्या का प्रस्ताव आया..फ़िर
कुन्डली मिलायी गयी और अबकी बार पुरोहितों ने कहा कि ये कन्या हर तरह से
दशरथ के लिये उत्तम है लिहाजा प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया..और कार्यवाही
आगे की तरफ़ बङने लगी..उधर लंका के कारागार में बन्द देवताओं ने कहा देखा हम
कहते थे कि इस रावण के अन्त का समय निकट आ रहा है अब कुछ ही दिनों में
दशरथ का विवाह होगा..फ़िर उनके घर भगवान राम का जन्म होगा..राम इस
दैत्य रावण को मार देंगे और हम मुक्त हो जायेंगे..यही भविष्यवाणी है यही होना है .
रावण ने गुप्तचरों से इस खबर की वास्तविकता पता लगाने को कहा तो बात
सौलह आने सच थी. उसने एक महाबली दैत्य को आदेश दिया कि दशरथ का विवाह
हो इससे पहले ही तू कन्या ( कौशल्या ) का हरण करके मार डालना . दैत्य इस आग्या
को मानकर चला गया . उधर दशरथ की बारात दरबाजे पर पहुँची और इधर मायावी
दैत्य ने कौशल्या का अपहरण कर लिया लेकिन बाद मैं उसे दया आ गयी सो उसने
कौशल्या को मारने की बजाय एक बङे बक्से में बन्द करके समुद्र में फ़ेंक दिया .
उधर जब वैवाहिक कार्यक्रमों हेतु कौशल्या की तलाश की गयी तो सब दंग रह
गये .कौशल्या गायब थी और बारात दरबाजे पर खङी थी अब क्या किया जाय . तब
घर के बङे लोगों ने विचार किया कि कौशल्या का मामला बाद में देखेंगे फ़िलहाल
इज्जत बचायी जाय . सो उन्होने तुरन्त छोटी बहन सुमित्रा को कौशल्या के विकल्प
के रूप में तैयार किया और गुपचुप तरीके से आपस के लोगों को समझाकर सुमित्रा
का (कौशल्या की जगह) विवाह दशरथ के साथ कर दिया . दशरथ या उनके पक्ष का
या उस राज्य के लोग इस बात को न जान सके..कुछ गिने चुने परिवार के लोगों तक
ही यह बात सीमित रही .इस तरह ये विवाह निर्विघ्न हो गया . तब लंका में बन्द देवता
कहने लगे . रावण ज्यादा अक्लमंद बनता है देखो दशरथ का विवाह हो गया अब राम
का जन्म....रावण को बेहद हैरत हुयी . उसने फ़िर सच्चाई पता की तो बात एकदम सच थी
जिस दैत्य को कौशल्या को मारने भेजा था उससे जबाब तलब किया तो उसने शपथ
पूर्वक कहा कि उसने कौशल्या को मारकर समुद्र में फ़ेंक दिया..इस बात को वह छुपा
गया कि उसने कौशल्या को मारा नहीं बल्कि जिन्दा ही फ़ेंका है . खैर तब दशरथ की
बारात समुद्र मार्ग से बङी बङी नौकाओं में आ रही थी..रावण ने एक दूसरे दैत्य को
आदेश दिया कि समुद्र में तूफ़ान उठाकर सारी बारात को तहस नहस कर दे और बारात
को डुबोकर मार डाले...इस दैत्य ने ऐसा ही किया..सारी नावें उलट पुलट हो गयी
कोहराम मच गया..और लोग इधर उधर जान बचाने की कोशिश करने लगे..दशरथ
और सुमित्रा एक टूटे बेङे पर बैठे हुये विशाल सागर में भगवान की दया पर बेङे के
साथ बहने लगे अन्य बारात का कोई पता नहीं था .
दूसरे दिन दोपहर के समय उनका बेङा एक टापू से जा लगा .तब दशरथ ने
राहत की सांस ली . लेकिन वे इस वक्त किस स्थान पर हैं इसका उन्हें पता नहीं था और
दशरथ को अभी तक ये भी नहीं मालूम था कि उनके साथ बैठी बधू कौशल्या नहीं सुमित्रा
हैं . इस तरह दो दिन बिना खाये पीये गुजर गये . न कोई नाविक आता दिखा और न ही
कोई अन्य सहायता ..तब शाम के समय सुमित्रा को एक बक्सेनुमा कोई चीज टापू के
पास से जाती हुयी दिखायी दी..दोनों ने मिलकर उसे खींचा कि शायद कोई खाने की चीज
या कोई अन्य उपयोगी चीज प्राप्त हो जाय..दोनों ने मिलकर बक्से को जतन से खोला
अन्दर से सजी सजायी हुयी एक नववधू प्रकट हुयी जिसे देखते ही सुमित्रा ने बेहद आश्चर्य
से कहा..अरे जीजी आप..कैसे..?
दशरथ भौंचक्का होकर दोनों को देख रहे थे..तब सुमित्रा ने इस राज पर से परदा उठाया
और बताया कि वास्तव में कौशल्या तो ये है ...कौशल्या ने भी आपबीती सुना दी अब ये
दो से तीन हो गये..और टापू पर किसी सहायता की आस में दिन गुजारने लगे..उधर
देवताओं ने फ़िर कहा..रावण पागल हो गया है..दशरथ को कुछ नहीं हुआ वह अपनी
दोनों पत्नियों के साथ टापू पर किसी सहायता के इन्तजार में है अब उनके घर भगवान राम
का जन्म होगा..राम इस दैत्य रावण को मार देंगे और हम मुक्त हो जायेंगे..यही भविष्यवाणी
है यही होना है .
अबकी रावण क्रोधित हो उठा उसने एक महाशक्तिशाली दैत्य को तीनों की हत्या के लिये
टापू पर भेजा और प्रमाण स्वरूप तीनों की आंखे निकालकर लाने की आग्या दी. महामायाबी
ये दैत्य जिस समय टापू पर पहुँचा उसका सामना सुमित्रा से हुआ क्योंकि ये मानव के रूप
में था अतः सुमित्रा ने बेहद मासूमियत से इसे भैया के सम्बोधन से पुकारा और धर्म भाई
बनाते हुये उसकी कलाई पर चीर बान्ध दिया..दैत्य के सामने धर्मसंकट उत्पन्न हो गया..अब
अगर वह तीनों में किसी का बध करता तो उसे भारी दोष पाप लगता..और वैसे भी उसने
सोचा कि रावण अकारण ही इन निर्दोषों को मारना चाहता है..ये भला उसका क्या अहित कर
सकते हैं..अतः उन्हें मारने का विचार त्यागकर उसने हिरन आदि जीवों की आंख रावण को
दिखा दी और कहा कि उसने काम पूरा कर दिया .
इधर लगभग पाँचवे दिन एक नाविक उधर से गुजरा..दशरथ ने ऊँचे स्वर में
कहा..ए नाविक मैं अयोध्या का राजा दशरथ हूँ और यहाँ एक आकस्मिक मुसीवत में फ़ंस
गया हूँ यदि तुम किसी उचित थलीय स्थान पर हमें पहुँचा दोगे तो मैं तुम्हें मालामाल कर
दूँगा..उसने व्यंग्य से कहा..श्रीमान फ़िर से अपना परिचय तो देना..दशरथ ने दिया..
उसने कहा..आओ तुम तीनों मेरी नाव में बैठो..तुम्हें समुद्र में डुबोकर मेरा बहुत पुन्य
होगा..बङे आये इनाम देने वाले...घमन्डी राजा अच्छा हुआ तुमने अपना परिचय दे दिया
तुम्हें कोई सहायता करना तो दूर नाव पर चढने भी नहीं दूँगा...?
दशरथ को बेहद आश्चर्य हुआ...उन्होने अत्यंत विनम्रता से कहा कि ..हे नाविक तुम कौन
हो..मुझसे तुम्हारी क्या दुश्मनी है..आदि..आदि..नाविक ने कहा कि मैं उसी कैकय देश का
नागरिक हूँ जिसकी राजकुमारी कैकयी की तुमने भारी बेइज्जती की..मैं क्या पूरा कैकय
देश दशरथ के नाम से नफ़रत करता है ..तब तीनों ने मिलकर जब उसे काफ़ी समझाया
तो वह एक शर्त पर तैयार हुआ कि दशरथ उसे वचन दें कि यहाँ से उसके साथ ही वह
तीनों कैकय जायेंगे और कैकयी से विवाह करेंगे..तो उनके देश से बेइज्जती का दाग दूर
होगा...तो वह सहायता कर सकता है..वे तीनों टापू पर अधमरे से हो चुके थे..किसी
सहायता की कोई आस नजर नहीं आ रही थी अतः दशरथ ने वचन दे दिया...और वचन
के अनुसार पहले कैकय देश जाकर कैकयी से विवाह किया...इस तरह अनोखे घटनाक्रम
से दशरथ के तीन विवाह हुये ..

पुनर्जन्म कल्पना नहीं ठोस हकीकत है..?

पुनर्जन्म कल्पना नहीं ठोस हकीकत है..?

अभी लगभग दो साल पहले पुनर्जन्म की तीन प्रमुख घटनाओं से प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रोनिक
मीडिया में तहलका ही मच गया..इनमें एक शाहजहाँपुर के राजेश rajesh की थी जो अपने आपको
पूर्वजन्म का अंग्रेज साइंटिस्ट बताता था और विदेश स्टायल की अंग्रेजी यकायक बोलने लगा था.
अभी ये बात सुर्खियों में ही थी कि एक गाँव में नासा की वैग्यानिक और डिस्कवरी अंतरिक्ष यान
दुर्घटना में मृतक कल्पना चावला kalpna chawla के पुनर्जन्म की खवरों का हल्ला मचने लगा
अभी यह खवर भी ठीक से थमी नहीं थी कि एक प्लेन दुर्घटना में मृत माधवराव सिन्धियां
madhavraw sindhiya के पास ही के एक गाँव ( जहाँ प्लेन दुर्घटना हुयी थी ) में जन्म लेने
की खवर से मीडिया जगत में सनसनी फ़ैल गयी..इसके बाद भी कुछ छोटी छोटी पुनर्जन्म
की अन्य खवरें आती रहीं ..ये सब चल ही रहा था कि एन. डी. टी. वी. इमेजिन Ndtv imejin
के एक प्रोग्राम ..राज..पिछले जन्म का..raj ..pichhale janm ka ने लोगों को पुनर्जन्म की
चर्चाएं करने पर विवश कर दिया ...ये ऊपर की तीन प्रमुख घटनाएं राजेश , कल्पना चावला
और माधवराव सिन्धिया.. IBN7..INDIA T.V..ZEE NEWS..STAR NEWS..आदि
प्रमुख न्यूज चैनलों पर हफ़्तों एक सनसनीखेज news के रूप में छायीं रही .
मैंने राज ..पिछले जन्म का...का जिक्र महज इसीलिये किया है कि कोई भी जो आत्मग्यान की
तीसरी या चौथी कक्षा का भी विधार्थी student है . वो आसानी से ये बात बता सकता है कि
इस प्रोग्राम की धारणा ही एकदम बेतुके और निराधार तथ्यों पर आधारित है क्योंकि..because...अपने
पूर्वजन्म को देखने हेतु हमें स्थूल शरीर से सूक्ष्म शरीर में प्रविष्ट करनी होती है और सूक्ष्म शरीर
से कारण शरीर karan sharir में प्रविष्ट करनी होती है ..और ये योगियों का काम है ...किसी
बच्चे का खेल नहीं..कारण शरीर ही वो शरीर है जहाँ हमारे अनंत जन्मों के संस्कार एकत्र हैं
और ये सच है कि कारण में सुरती किसी तरह पहुँच जाय तो हम अपने एक क्या कई पिछले
और अगले जन्मों को देख सकते हैं ...पर जिस तरह इसको दिखाया जा रहा है उस तरह हरगिज
नहीं ..यहाँ एक बात ये बता देना उचित है कि ये बात मैं किसी अध्ययन या सुनी सुनाई बात के
आधार पर नहीं कह रहा बल्कि प्रक्टीकल बेस पर कह रहा हूँ ..इस तरह स्टूडियो के माहौल में
प्रचारात्मक उद्देश्य से किसी भी आत्मग्यान की क्रिया में प्रविष्टि नहीं की जा सकती...फ़िर कारण
शरीर में जाना तो बहुत बङी बात होती है..आपको अगर ध्यान हो तो महाभारत के एक पात्र
भीष्मपितामह की क्षमता भी अपने सौ जन्म तक उठ पाने की थी इससे ऊपर उन्हें श्रीकृष्ण
ने उठाया था ....बहरहाल ये लोग क्या दिखाते हैं...कैसे दिखाते हैं..और क्या दिखता है...इसमें
कितना सच है...कितना झूठ है..ये वही लोग बेहतर जान सकते हैं ..परन्तु मैं ये पक्का जानता हूँ
कि किसी भी आदमी को यकायक उसका पुनर्जन्म दिखाना असंभव ही नहीं नामुमकिन है..
इसके लिये साधक को एक विशेष विधान द्वारा अभ्यासी बनाया जाता है फ़िर उसको सुरती
द्वारा उठाया जाता है तब छह महीने से ...एक साल में उसको इस तरह का अनुभव होता है सो
भी साधक की स्वनिष्ठा यदि लगनशील नहीं है तो ये भी कोई जरूरी नहीं ..यह पूरी तरह समर्पण
और सुमरन ( खुद के मरने के तरीके का अभ्यास ) का मार्ग है .
लेकिन जिस समय राजेश और कल्पना चावला का मामला उछल रहा था ..मैं उन दिनों संत
समुदाय (आत्मग्यानी ) के सानिंध्य में था और एक परिचित के माध्यम से ये जिग्यासा जब वहाँ
पहुँची तो इन दोनों घटनाओं को " सत्य " बताया गया..हालांकि माधवराव सिन्धिया की बात
मेरे सामने नहीं हुयी..मेरे द्वारा इन पर विश्वास करने का कारण ये था कि एक तो मैं स्वयं ही पिछले
बीस सालों से अलौकिक साधनाओं के सम्पर्क में हूँ ..दूसरे महात्माओं ने एक बार खुश मूड में मुझे
स्व श्रीमती इंदिरा गान्धी late prime minister shrimati indira ghandhi की वर्तमान स्थिति दिखायी तथा कुछ और भी अलौकिक अनुभव कराये जिनके मद्देनजर किसी तरह के शक का कोई
प्रश्न ही नहीं था .
यहाँ एक विचारणीय प्रश्न ये है कि कोई जीव या मनुष्य जब अकालमृत्यु मरता है तो आखिर वो
कहाँ जाय...भगवान के नियम के अनुसार जब तक जीव का समय पूरा नहीं हो जाता दूसरे
शरीर में उसकी स्थिति नहीं हो सकती ..तो जो लोग अपनी आयु शेष छोङकर कालकवलित
हो जाते हैं उन्हें यमदूत लेने नहीं आते..वे अपना स्थूल देही दुर्घटनावश त्यागकर सूक्ष्म शरीर के
साथ निरुद्देश्य इधर उधर घूमते रहते हैं..इस स्थिति को भूत प्रेत योनि नहीं समझा जा सकता
और न ही उसके समकक्ष रखा जा सकता है..सूक्ष्म शरीर बिल्कुल ऐसा ही (स्थूल शरीर या मानव
शरीर जैसा ) होता है...केवल मनुष्य के लिये यह अद्रष्य होता है कुछ जीव जैसे कुत्ते घोङे बिल्ली
आदि इसको देखने में सक्षम होते हैं ..यह हल्का होता है और इसकी चलन गति कुछ इस तरह की
होती है जैसे चन्द्रमा पर होती है..यानी एक कदम उठाने पर सौ कदम के बराबर हल्के उङने जैसी
स्टायल में जीव एक स्थान से दूसरे स्थान पर गमन करता है...भले ही अपनी जिन्दगी में वो आदमी
कभी पेङ पर चङना न जानता हो पर इस शरीर के साथ वो आराम से पेङ पर चङता है...बल्कि
अपनी सूक्ष्म शरीर की अवधि को वो ज्यादातर पेङ पर ही गुजारता है..इस सम्बन्ध में पूरी पुस्तक
लिखी जा सकती है इसलिये इतना ही लिख रहा हूँ ....कुछ समय बाद वो सूक्ष्म शरीर जीव
अपनी स्थिति का चिंतन करता है..और फ़िर अपनी वासनाओं और अन्य जीवों से अपने संयुक्त
कर्म संस्कार के आधार पर पहले से स्थापित हो चुके किसी महिला के गर्भ में पाँचवे महीने में
प्रविष्टि करता है..वह अपनी पूर्व स्थिति के अनुसार ही शरीर पाता है जैसे औरत तो औरत
आदमी तो आदमी...क्योंकि अभी उसकी मानसिक स्थिति में(उस स्तर पर) कोई बदलाव नहीं हुआ है
इस तरह फ़िर जन्म को प्राप्त होता है..आदि..इस पूरी घटना को बिलकुल कारणो सहित लिखना
लगभग असंभव है..क्योंकि एक जीव की स्थिति से उस वक्त उसमें लाखों अन्य घटक भी मिल
जाते हैं.. हाँ यदि मृतक के अपने उसी घर में संस्कार शेष है..और घर की कोई भी महिला
उस समय तीन चार महीने का गर्भकाल पूरा कर चुकी है तो निसंदेह उसका पुनर्जन्म अपने
ही घर में होगा..लेकिन यदि घर में गर्भिणी महिला नहीं है तो जीव दूसरे सम्बन्धों से कनेक्ट
हो जाता है ..आदि
मैं आपको एक किस्सा बताता हूँ जो ठीक मेरे सामने उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले में शहर
मैंनपुरी में घटा है और अभी ताजा ही है..मैंनपुरी के मदारगेट पर पन्नालाल यादव नामक
सब्जी विक्रेता सब्जी की ठेल लगाते हैं..लगभग पाँच साल पहले जब ये देवी रोड पर
एक प्लास्टिक की कुर्सियों के डिस्ट्रीब्यूटर के गोदाम पर चौकीदार थे और उनका परिवार
वहीं रहता था..ये गोदाम कब्रिस्तान के एकदम निकट है और आसपास का स्थान भुतहा
समझा जाता है..इनके तीन बच्चों में सबसे छोटा पुत्र अचानक बीमार होकर मर गया
..बाद में इसने मदारगेट के सामने रहने वाले एक परिवार में जन्म लिया और बोलना
और चलना शुरु होते ही इसने अपने पूर्व माँ बाप को पहचान लिया...पहले घर के लोगों
ने इसकी बातों पर गौर नहीं किया..तब ये घर के दरबाजे पर खङा होकर उस तरफ़
देखने लगा..जिस रास्ते से इसकी माँ शाम के समय ठेले पर आती थी..दरअसल उस घटना
के बाद पन्नालाल ने वो नौकरी छोङ दी..और फ़िर से सब्जी का ठेला लगाने लगे..इस
तरह कुछ ही दिनों में बच्चे ने अपने माँ बाप को पहचान लिया..इस बच्चे के लोगों ने
कई तरह से टेस्ट लिये जिनमें यह पूरा उतरा .
पुनर्जन्म कल्पना नहीं ठोस हकीकत है..?

सब उपाय बेकार है भाई ..

सब उपाय बेकार है भाई ..

सब उपाय बेकार है भाई ..
निज अनुभव तोहि कहहुँ खगेशा .
बिनु हरि भजन न मिटे कलेशा .
कोऊ ना काहू सुख दुख कर दाता .
निज करि करम भोग सब भ्राता .
हरि व्यापक सर्वत्र समाना .
प्रेम से प्रगट होत मैं जाना .
संत मत की द्रष्टि से ये दोहे अधिक कीमती नहीं है पर संसार की
द्रष्टि से ये बहुमूल्य है क्योंकि संसारी जीव को सुख शांति की तलाश
अधिक है इसलिये इन तीन दोहों में उसकी बहुत सी समस्याओं का
हल छुपा हुआ है . निज अनुभव तोहि ..श्री शंकर जी ने गरुण से
कहा है इसलिये इस दोहे को हल्का लेना कतई अक्लमंदी नहीं है .
आप सोचिये शंकर जैसा देवता कह रहा है कि ये मेरा अनुभव है कि
विना हरि भजन के कलेश नहीं कट सकते चाहे वह कितनी बङी
हस्ती क्यों न हो..हरि भजन तो अपनी जानकारी में सभी करते है
फ़िर कलेश क्यों नहीं कटते ..इसका अर्थ ये तो नहीं है कि शंकर झूठ
बोल रहें हैं..सही बात ये है कि वो उस भजन की और इशारा कर
रहे हैं जो गूढ है . गीता में श्रीकृष्ण ने जिस भजन की और इशारा
किया ये उस भजन की बात है . शंकर भी मुक्ति हेतु इसी का उपदेश
करते हैं .
काशी मुक्ति हेतु उपदेशू , महामन्त्र जोइ जपत महेशू .
कोऊ ना काहू सुख दुख कर..जब हम सतसंगी भाई आपस में मिलकर
चर्चा करते है और कोई निगुरा या बाहरी व्यक्ति हमारे वार्तालाप में
शामिल होता है तो अक्सर ये बात अवश्य ही उठती है कि उसने उसके
साथ ऐसा कर दिया उसकी वजह से उसको ये परेशानी हुयी ..ये ही
प्रश्न लक्ष्मण ने राम से किया था कि प्रभो आप तो सब जानने वालें हैं
फ़िर ये बतायें कि भाभी ( सीता ) किस बात का दुख भोग रही है .
तब श्रीराम ने लक्ष्मण को यही जवाव दिया था . संत मत के लोग इसको
बखूबी जानतें हैं कि कोई किसी के साथ कुछ नहीं कर रहा है. जीव
परमात्मा के बनाये नियम के अनुसार अपनी करनी का ही फ़ल भोग रहा
है .अच्छा है तो फ़ल ही है बुरा है तो फ़ल ही है .
हरि व्यापक सर्वत्र .......ये कितनी अजीव बात है कि हम रामायण आदि
का अखंड पाठ आदि करते है अन्य कई तरह की उपासनाएं करते हैं पर
रामायण की इस बात पर हमारा ध्यान ही नही जाता कि भगवान सब
जगह हैं और प्रेम से प्रगट होते हैं .दरअसल इसके दो तरीके है एक तो
भगवान से सतत प्रेम करना और दूसरा सब में भगवान को ही देखना
वास्तव में यह छोटी बात लगती अवश्य है पर है बङी चमत्कारिक . मेरी
जानकारी में कई लोगों ने इस सूत्र का प्रयोग किया और बङे ही चमत्कारी
नतीजे सामने आये .दूसरी बात ये भी है कि कोई माने तो, ना माने तो इसके
अतिरिक्त और कोई मार्ग है ही नही है क्योंकि आत्मा के स्तर पर सबमें वही
परमात्मा ही है जब दूसरा है ही नही तो भेद किसके साथ हो .
ना कुछ तेरा ना कुछ मेरा चिङिया रैन बसेरा .
कितने शरीर बने बिगङे , कितने रिश्ते नाते बने बिगङे फ़िर भी तुम भरमाने
वाले खेल मैं भरमाये हुये हो ...तमाशा देखने वाले तमाशा हो नहीं जाना .
इसलिये ये सब उपाय बेकार है किसी सच्चे संत की तलाश करो उनसे प्रेम
नाम (ढाई अक्षर का महामन्त्र ) विधिपूर्वक लो फ़िर तुम्हारी सारी तलाश
खत्म हो जायेगी क्योंकि उसके पहले तथा उसके बाद न कोई था और न है
और न होगा .
एकोहम द्वितीयोनास्ति ,ना भूतो ना भविष्यति .

आत्मा के वारे में जानें ...know about your soul

आत्मा के वारे में जानें ...know about your soul

आत्मा के वारे में जानें ...know about your soul
आत्मा ( soul ) आकाश (sky )की तरह सूक्ष्म तथा सर्वत्र समाया
हुआ है .आत्मा के स्वरूप का ग्यान होने पर जीव ( man ) अपने
जीव होने के भाव को छोङ देता है . इसे (आत्मा ) जानकर जीव
का स्वभाव आत्मा के समान न जनमने वाला न मरने वाला
अविनाशी भाव हो जाता है . अविवेक अनित्य है यानि ग्यान होने
पर नष्ट हो जाता है . ग्यान बिग्यान आत्मा के ही अधीन है . जिस
प्रकार सर्वव्यापक आकाश में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड संगत पाता है . उसी
प्रकार आत्मा ( soul ) भी आकाश की तरह इससे भी अति सूक्ष्म
है . बिना आत्मा की संगति के शरीर( body ) चेष्टा नहीं पाता .
आत्मा अपनी इच्छा से ही सिमट जाती है . शरीर का अस्तित्व नहीं
रहता . शरीर के द्वारा ही वह ग्यान करता है . ध्यानावस्था में सुरति
के द्वारा स्वर में शब्द को पूरक कुम्भक रेचक स्थिति को पा जाता है
फ़िर कुछ देर का अभ्यास वर्ण वाले शब्द को पार करके बिन्दु रूप में
पहुँच जाता है. बिन्दु रूप में पहुँचकर वह बिन्दु परमात्मा(god ) में
संगत पाता है . इस लिये बिन्दु (point ) के द्वारा ब्रह्म में मिलकर उस
परमात्मा का साक्षात्कार ( interview ) करता है .
साधक इन्द्रियों को एकाग्र कर लेता है तथा सुष्मणा में प्रवेश करता
है .तब सूक्ष्म शरीर सुष्मणा से ब्रह्मरन्ध्र में होता हुआ शरीर में ऊपर दसवें
द्वार होकर आत्मा में लीन हो जाता है . इन्द्रियों के सब दरवाजे बन्द करें
तब तन मन अन्दर ही जम जायेगा तथा दबाया हुआ मन ह्रदय में ही पङा
रहेगा तब प्राण के द्वारा अक्षर का ध्यान करना चाहिये .जो प्राण तथा प्राण
के परे भी है फ़िर ब्रह्मरन्ध्र से होता हुआ ध्यान को ऊपर की ओर ले जाकर
परमात्मा में स्थिर कर दें जो परमात्मा सर्वत्र सर्वशक्तिमान प्रकाश स्वरूप
आनन्द का भन्डार है . ऐसी स्थिति में योगी सुषमना से शब्द में मिलकर
शरीर से निकल जाता है तथा परमात्मा का साक्षात्कार करता है .
साधक जब ध्यानावस्था में स्थिति होकर अन्तःकरण को प्राण के समान
सूक्ष्म तथा स्वच्छ बना लेता है तब वह वाणी से परावाणी का प्रत्यक्ष अनुभव
कर उसमें लीन हो जाता है . उस परा में लीन होने पर वह एक ऐसी शक्ति
( power ) का अनुभव करता है जिसकी शक्ति से सारे संसार के जीव अपनी
क्रिया कर रहे हैं तथा प्रकृति ( nature ) भी क्रीङा करती हुयी इसी जगत
(world) में दिखायी देती है .यह सारे काम परमात्मा की सत्ता में ही
क्रियावान है .साधक सुरति से पराशब्द का बोध करता है तो वह परा में प्रवेश
होकर आत्मा का साक्षात्कार करता है .

आत्मा ज्योर्तिमय आनन्दमय है .

आत्मा ज्योर्तिमय आनन्दमय है .

आत्मा ज्योर्तिमय आनन्दमय है .


ओंकार को नेत पुकारा , यह सुन शब्द वेद से पारा .
अंडा सुन्न में सैर करायी , सो वो शब्द परखिया भाई
जो यह ओंकार शब्द है . वह वेद की वाणी से परे यानी
उससे अलग है जिसमें प्रवेश होने से जो यह अंडाकार
ब्रह्मांड है उसमें पहुँच कर परमात्मा का दर्शन कराने
वाला हैं जिसे विदेह स्थित में जानो . आत्मा सब भूत
तत्वों में निवास करती है .
आत्मा ज्योर्तिमय आनन्दमय है .
जब इन्द्रियां अपने स्वरूप में स्थित हो जाती है तथा मन
बुद्धि के निर्णय से शान्त हो जाता है और अहंग चित्त में
स्थित होकर देखता है तब वह पराविधा को ही देखता है .
जो वाणियों का माध्यम परावाणी है . वह आत्मा से ही
उत्पन्न होती है जिस प्रकार आकाश का गुण वायु है आत्मा
का गुण पराविधा है .
बुद्धि आदि इन्द्रियों से सम्बद्ध होने के कारण आत्मा को साक्षी
कहा जाता है . जब बुद्धि से अविवेक दूर हो जाता है तब आत्मा
का साक्षीपन मोक्ष में बाधा नहीं डालता है .
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड शून्य है क्योंकि ब्रह्माण्ड की आकृति शून्य जैसी
गोल है . इससे सारी ही आकृतियां गोल है .सूर्य , चन्द्र , तारे
प्रथ्वी सभी शून्य जैसी आकृति वाले है .सभी अण्ड गोल वृक्ष
पहाङ शून्य के समान प्रतीत होते हैं . अतः अण्ड पिण्ड ब्रह्माण्ड
सब शून्य है .
मन जब विचारों से शून्य हो जाता है तब समाधि में समा जाता
है .

अविनाशी अक्षर क्या है ?

अविनाशी अक्षर क्या है ?

अविनाशी अक्षर क्या है ?
वह शब्द जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में स्पंदन करता है सारी स्रष्टि
में समाया हुआ है .वह अविनाशी अक्षर ही स्वांस की आने
जाने की क्रिया को चलाता है तथा प्राण का कारण रूप है .
परमात्मा का अनुभव ध्यान , सुमरन, चिन्तन सुरति द्वारा
किया जाता है जब सुरति अक्षर में पूर्ण रूप से पहुँच जाती
है तब वह अक्षर से प्राण में और प्राण से सूक्ष्म भूमा में
पहुँच जाता है .
भूमा तत्व का उदाहरण - नींद में स्वप्न में आनन्द , इन्द्रियों
का आत्म बोध .
साधक इन्द्रियों को स्थिर कर प्राण में अक्षर को जानता है
अक्षर की संगत से वह बार बार अक्षर में ध्यान करता है
तब अक्षर के घर्षण से भूमानन्द का अनुभव होता है वह
भूमा आत्मा ही प्रथम पाद है .
आकाश अणुओं से भरा पङा है सुई की नोक के बराबर
खाली स्थान नहीं है . उदाहरण - सूर्य के प्रकाश में दिखने
वाले अणु परमाणु आदि .
जिस प्रकार वाष्प से बिन्दु बनता है . बिन्दु से ध्वनात्मक
शब्द उत्पन्न होता है तथा ध्वनात्मक से " हँसो " वर्ण का
रूप धारण कर लेता है . जब प्राण से प्राण टकराता है तब
एक झीना शब्द प्रकट कर लेता है .
आकाश अक्षर में स्थित है . आकाश का सूक्ष्म तत्व शब्द शून्यता
चिन्ता मोह संदेह ये सारे गुण आकाश के ही हैं .
जीव अपने को कर्ता मानता हुआ कार्य करता है इसलिये उसे
उसका भोग मिलता है . आत्म सुख में बाधा डालने वाली ये
विषय वासना ही है .