Thursday, 25 November 2010

ओबामा ज़्यादा से ज़्यादा वीटो रहित सुरक्षा परिषद सदस्यता के लिए कोशिश करने का आश्वासन भर दे सकते हैं. भारत को इन लुभावने आश्वासनों से बचना चाहिए.

अभी तक भारत आए अमरीका के छह राष्ट्रपतियों में से किसी ने अपनी यात्रा की शुरुआत मुंबई से नहीं की है. हालांकि ओबामा ये दिखाना चाहते हैं कि उनकी यात्रा का मक़सद मुंबई हमलों के शिकार लोगों को श्रद्धांजलि देना है, लेकिन वो वास्तव में मंदी से जूझ रहे अमरीका वासियों के लिए रोज़गार खोजने आए हैं.
अमरीका की बेरोज़गारी दर नौ फ़ीसदी के आसपास मँडरा रही है, जबकि भारत की विकास दर इस समय लगभग यही आँकड़ा छू रही है. सुनने में ये बात आश्चर्यजनक लग सकती है कि हाल में अमरीका में भारत के निवेश की वजह से 65 हज़ार नौकरियाँ या तो बनीं हैं या बचाई गई हैं. फ़िक्की और अर्नेस्ट एंड यंग की संयुक्त रिपोर्ट में कहा गया है कि संयुक्त अरब अमीरात के बाद भारत का अमरीका में निवेश सबसे तेज़ गति से बढ़ रहा है और ये निवेश ज़्यादातर दवाओं और सूचना प्रोद्योगिकी के क्षेत्रों में हुआ है. मंदी से घिरा अमरीका उच्च तकनीक के निर्यात में छूट देकर नाटकीय रूप से भारत के निवेश को बढ़ाना चाहता है ख़ासकर रक्षा और अंतरिक्ष क्षेत्र में.
सवाल ये उठता है कि इसके बदले में क्या अमरीका कुछ देने की स्थिति में है? ओबामा दिवाली के मौक़े पर भारत आए ज़रूर हैं लेकिन उनसे ये उम्मीद मत रखिए कि वो आप के लिए दिवाली के उपहार भी साथ लेकर आएँ. उदाहरण के लिए ये उम्मीद पालना कि अमरीका संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के भारत के दावे का समर्थन करेगा, फ़िज़ूल होगा.
ओबामा ज़्यादा से ज़्यादा वीटो रहित सुरक्षा परिषद सदस्यता के लिए कोशिश करने का आश्वासन भर दे सकते हैं. भारत को इन लुभावने आश्वासनों से बचना चाहिए. ओबामा आतंकवाद के ख़िलाफ़ आवाज़ ज़रूर उठाएँगे लेकिन अपने कारणों और अपनी गरज़ की वजह से. इसके बाद अगर आप उम्मीद करें कि वो पाकिस्तान को हथियार ख़रीदने के लिए दो अरब डॉलर के पैकेज पर पुनर्विचार करें तो आप बहुत बड़े मुग़ालते में हैं. अमरीका भारत से चाहता तो बहुत है लेकिन बदले में ख़ास ज़्यादा दे नहीं सकता.
शायद यही वजह है कि मनमोहन सिंह बराक ओबामा से वो कहने की स्थिति में नहीं हैं जो उन्होंने उनके पूर्ववर्ती से कहा था कि 'सारा भारत आपको प्यार करता है' !

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