Thursday, 25 November 2010

बराक ओबामा भारत आए, और चले भी गए.

  बराक ओबामा भारत आए, और चले भी गए. आपका आकलन काफ़ी हद तक सटीक है. उन्होंने पाकिस्तान से अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के अंतरसंबंधों का कोई जिक्र नहीं किया और न ही मुम्बई हमलों पर उसकी भूमिका के खिलाफ़ ही कोई एक शब्द कहा. इस मसले पर अपने पूरे दौरे में ओबामा बचाव की मुद्रा में ही दिखे, यहां तक कि बच्चों के सामने भी. सुरक्षा परिषद में भारत की स्थाई सदस्यता के विषय में उनका समर्थन अवश्य मुखर रहा, परन्तु खुद चीन के एक अखबार ने अपनी सम्पादकीय टिप्पणी में उनके इस आश्वासननुमा समर्थन को ओबामा द्वारा दिया गया एक ऐसा चेक करार दिया है, जिसे भुना पाना भारत के लिये आसान नहीं होगा. जी-20 की ओर आशा भरी नज़रों से देखना ही भारत को अपने अभीष्ट तथा ओबामा को अपने समर्थन की सार्थकता, दोनों के लिये मजबूरी है. ले देकर भारत को जो कुछ भी हासिल करना है, अपने बूते ही हासिल करना होगा और भारत निर्विवाद रूप से उस दिशा की ओर अग्रसर भी है. अब हमें भारत के याचक वाली छवि के आग्रहों से ऊपर उठकर ही कुछ लिखना चाहिए.

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